Tuesday 23 February 2021

मैं और मेरी परछाई

 हर कदम पर मै एक उड़ान भरता रहा,

पर संभलने की जगह मैं गिरता रहा।

कुछ हाथ बढ़े तो थे मेरी मदद को शायद,

फिर ये आंसू बहते गए 

और हम रेत की तरह फिसलते गए,

शायद जीने की एक उम्मीद सी जग रही थी कहीं,

अभी भी एक लौ जल रही थी कहीं,

आग शायद कहीं तो लगी थी,

पर जो जल के भी बुझी थी,

वक्त बीतता गया लौ जलती रही,

वह धीरे धीरे ज्वाला बनकर बढ़ती रही,

हर क्षण बिगड़ती बनती रही,

यूं ही दिन दिन वह धधकती रही,

कभी लगा वह आक्रोश कम सा था,

पर वह छुपारुसतम  सा था,

लपटे उसकी बढ़ती रही

मुझे अपने आगोश में भरती रही,

फिर से कदमों के आहट मुझे महसूस हुई,

फिर कहीं खामोशी परछाई बनी,

शायद उम्मीद को रोशन करने कोई यहां आया था,

वो कोई और नहीं मेरा अपना ही साया था,

जिसने वो लौ जलाई थी वो मैं और मेरी परछाई थी।














Thursday 10 October 2013

चाहत : एक कलीं उम्मीदों की

उम्मीदों के रोशन चमन में,
एक नया सवेरा छाया हैं,
एक नन्ही कलीं चाहत की,
नयी चाहत भरने आया हैं,

चाहत हैं जज्बो मैं,
नए पथ कें, नए सपनों में,
चाहत हैं आँखों में,
नए खुशी के, नए आँसू में,
क्या? एक नया सवेरा छाया हैं,
एक नन्ही कलीं चाहत की
नयी चाहत भरने आया हैं,

उम्मीदों के रोशन चमन में,
एक नया सवेरा छाया हैं,
एक नन्ही कलीं चाहत की,
नयी चाहत भरने आया हैं,

चाहत कुछ करने का,
नयी राहों पर बढ़ने का,
चाहत कुछ भरने का,
नयी कश्ती में गुजरने का,
हाँ, एक नया सवेरा छाया हैं,
एक नन्ही कलीं चाहत की
नयी चाहत भरने आया हैं,

उम्मीदों के रोशन चमन में,
एक नया सवेरा छाया हैं,
एक नन्ही कलीं चाहत की,
नयी चाहत भरने आया हैं,




वादें.......एक अजनबी एहसास

वादों का आजकल तो क्या कहना हैं,
कभी यहाँ तो कभी वहाँ रहना हैं,
कभी कभी कुछ सपनो का गहना हैं,
फिर भी वादों का क्या कहना हैं,
कभी यहाँ तो कभी वहाँ रहना हैं,

सब संजोते हैं यादे इन्ही वादों पर,
कभी हलकी हलकी सी बारिश
कभी वर्षा की भरी बरसात हैं,
कुछ तो है इन वादों में,
भरा भरा सा रहता हैं,
फिर भी, वादों का क्या कहना हैं,
कभी यहाँ तो कभी वहाँ रहना हैं,

वादों का आजकल तो क्या कहना हैं,
कभी यहाँ तो कभी वहाँ रहना हैं,
कभी कभी कुछ सपनो का गहना हैं,
फिर भी वादों का क्या कहना हैं,
कभी यहाँ तो कभी वहाँ रहना हैं,

Wednesday 3 April 2013

सपनो में महंगाई .....

आज हमारे सपने में आधी रोटी आई है ,
जिसके बलिदानों का कारण एक यही महंगाई है
सरकारे कहती रहती है कि होगी अब महंगाई कम,
होगा पेट भरा सबका और शिक्षित होगा अब जन-जन,
सुनते सुनते इनके वादे महंगाई बढती जाती है,
भूको मरते है लाखो और ये मलाई खाती है
उठते जाते दिन दिन मुद्दे फिर भी ना चुनती ये कोई राह,
फिर आते है नए वादों के साथ कई नई सरकार,
फिर सिहर उठता है आम आदमी का घर-बार,
फिर वादों में अटकलों को गिनाती रहती ये सरकार,
फिर से आज नये सपनो में एक उदासी छाई है,

आज हमारे सपने में आधी रोटी आई है ,
जिसके बलिदानों का कारण एक यही महंगाई है....





डर..

कुछ सहमा कुछ बदला सा है,
 जीवन का हर मंजर,
डरते चलती इन सपनो में,
 लग ना जाये खंजर,
सब दिखते है अपनों जैसे,
कैसे समझु मंजर,
कुछ सहमा कुछ बदला सा है,
 जीवन का हर मंजर,
हर शब्दों में भी आज चुभन है,
अपनों का बस नाम रहा है,
क्या जाने क्या क्या सोचे है,
मानव बना है भक्षक,

कुछ सहमा कुछ बदला सा है,
 जीवन का हर मंजर,

डरते चलती इन सपनो में,
 लग ना जाये खंजर......





Wednesday 20 February 2013

यूँ  तो हर कदम पर
 जीवन जीने की  इच्छा हैं ,
हर राह पर उस
 विष को पीने  की  इच्छा हैं ,
चलती हूँ उन काँटो पर 
 फूलो पर चलने  की  इच्छा हैं ,
हर वक्त सोचती हूँ
 उस सोच की चाल से बढ़ने  की  इच्छा हैं ,

लगता है बढ़ तो जाऊँगी 
पर इस पथ पर रूकने  की  इच्छा हैं ,
घबराती हूँ कहने  से 
पर इसी ऊम्र में जीने की इच्छा हैं,
यूँ  तो हर कदम पर
 जीवन जीने की  इच्छा हैं ,
हर राह पर उस
 विष को पीने  की  इच्छा हैं .......

यह विराम पल दो पल का है .......

यह विराम पल दो पल का है 
कुछ समय कुछ परिस्तिथी का है 

क्या दोष इसमें किसी का है ,
ना वक्त का है ना सीमा का है 

ना चलती है कश्ती ,
कुछ कागज का है कुछ फुलो का है 

यह विराम पल दो पल का ,है 
कुछ समय कुछ परिस्तिथी का है

क्या  सोचने का कारण है ,
ना सपना है ना चिन्ता है 

ना रुकती है  जिन्दगी,
कुछ बहने  का है कुछ बढ़ने  का है 

यह विराम पल दो पल का है 
कुछ समय कुछ परिस्तिथी का है।